Monday, January 25, 2010
राष्ट्रीय पुरस्कारों की औकात
फिर वही हुआ जो हर बार राष्ट्रीय पुरस्कारों के समय होता है। किसी ने ना मिलने पर आंसू बहाए तो किसी ने इन पुरस्कारों को दुत्कार दिया। दोनों ही वजह से लोग सुर्ख़ियों में आये। पद्मा अवार्ड में उपेक्षा से ओलम्पिक पदक विजेता बिजेंदर की आँखें नम हो गई। बिपाशा बासु और प्रियंका चोपड़ा के साथ ठुमके लगा चुके बिजेंदर को इस बात से दर्द हुआ की जब मुल्तान में तिहरा शतक मरने वाले उन्हीं के पड़ोसी सहवाग को पद्मा श्री मिल सकता है तो उन्होंने तो ओलम्पिक में मेडल जीता है। मगर उनका और ओलम्पिक मेडल विजेता सुशील का कारनामा शायद पुरस्कार समिति को कम लगा होगा तभी तो न दिया पद्मा अवार्ड का झुनझुना। समिति को लगा होगा की ऐसे अवार्ड बाँटने से तो अवार्ड की कीमत कम हो जाएगी। आखिर अवार्ड की इज्जत का सवाल है भाई। अब चाहे आपने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम क्यों न रोशन किया हो। अगर आप धोनी या ऐश्वर्या जैसे राष्ट्रीय स्तर पर पोपुलर चेहरों से मेल नहीं खाते तो सॉरी आप इस अवार्ड के काबिल नहीं हैं। बिजेंदर ने अवार्ड न मिलने पर आँखें नम कर ली उन्हें तो सीनियर पत्रकार पी. साई
नाथ से प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने पद्मश्री अवॉर्ड को लेने से ही इनकार कर दिय। पिछले दो दशक से साईनाथ विदर्भ में किसानों की समस्या पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है जब देश में किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है तो ऐसे में इन अवार्डों की कोई कीमत मेरी नजरों में नहीं है। यहाँ गौर करने वाली बात ये है की साईनाथ मैग्सेसे जीत चुके हैं। आपने देश के निर्माण में और उसे आगे बढ़ाने में कितना योगदान दिया, ये ज्यादा मायने रखता है। किसी अवार्ड के मिल जाने से आपकी लोकप्रियता में और काम में कोई निखार नहीं आता। कुछ समय के लिए इलेक्ट्रोनिक मीडिया आपको जरुर सर पर बिठा सकता है, मगर आखिर में आपका काम ही आपके लिए बोलता है। विजेंदर और उनके प्रशंसको को सिर्फ एक अवार्ड न मिलने से निराश नहीं होना चाहिए।
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