Sunday, August 8, 2010
दो साल की सफल मेहनत
क्या पढ़ रही है आजकल? मृतुन्जय, मराठी उपन्यासकार शिवाजी सावंत की रचना. ये कौन हैं? पता नहीं क्या क्या पढ़ती रहती हैं. राहुल से जब ये बात हुई तो उसकी बात पर मुझे बहुत हंसी आई. उसके हिसाब से मैं जाने क्या क्या पढ़ती रहती हूँ. मगर मैंने महाभारत के एक पात्र करण की जीवन गाथा पढने का निश्चय दो साल पहले उसी दिन कर लिया था जब चक्रेश जी ने मुझे इसके बारे में बताया था. उनका कहना था की इस किताब को पूरा किये बिना वापस नहीं रखा जा सकता. मैं ठहरी किताब रसिक. उनकी बात सुनते ही कहा मुझे भी पढनी है, तो जवाब मिला की किसी दोस्त को दी थी. अब याद नहीं. फिर दिनेशजी के मुंह से भी तारीफ आई. अब मैंने मन में ठान लिया की इस किताब को जरुर पढना है. सर्च शुरू की. चंडीगढ़ तक आई उसे सर्च करते करते. मगर बात नहीं बनी. कई बुक सेलर तो नाम सुनते ही मेरा मुंह ताकने लगते की ये कौन सी किताब है. हमने तो कभी नाम नहीं सुना. मगर मैं ठहरी धुन की पक्की. मैंने भी सर्च करना बंद नहीं किया. अपने सभी दोस्तों को भी कहा की किताब चाहिए. नजर रखना. राजेश मेरठ गया तो उसको भी अपनी इच्छा बताई. बाबा बुक मेले में गये तो उनसे भी किताब सर्च करने और अगर मिल जाये तो लाने का आग्रह किया. मगर नतीजा सिफर. इन्टरनेट का भी सहारा लिया लेकिन उसके बारे में नेट पर भी बहुत कम जानकारी थी. एक साईट मिली, उसमे नाम भी था, लेकिन मै कुछ असमंजस में फँस गई. मुझे लगा आर्डर दे तो दूँ अगर बुक गलत आई तो? यही सोच कर रुक गई. बुक नहीं मिली तो मन की इच्छा भी दबने लगी. फिर अचानक एक महीने पहले दिल्ली जाना हुआ. कनाट प्लेस के जैन बुक डिपो में एक मेग्जिन खरीदने गई तो सोचा की हिंदी किताबो पर भी एक नजर डाल ली जाये. वही कुछ ऊपर के खाने थोडा पीछे की तरफ काले जिल्द की एक किताब पड़ी थी. मृतुन्जय. मेरा मन खुश हो गया. जिसे सब जगह सर्च किया वो यहाँ ऐसे हालत में राखी है. मैंने शॉप वाले से कहा वो काली किताब. और जब उसने वो किताब मेरे हाथ में दी, मैंने तत्काल उसको खोल कर पढना शुरू कर दिया. अपनी ख़ुशी में छुपा नहीं पा रही थी. जैसे ही रूम पर पहुंची. मैंने उसे पढना शुरू कर दिया. जैसे जैसे मैं पन्ने पलटती गई. मुझे खुद पर गर्व होने लगा की मैंने दो साल तक इस किताब का ख्याल अपने मन में रखा. रोमांचित कर देने वाला अहसास.
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Mrutunjay ke unki Yugandhar bhi jarur padhiyega.
ReplyDeleteनिवेदिता, मृत्युंजय बेस्ड एक प्ले है कर्णकथा। एनएसडी में इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल और आपके यहां टैगोर थियेटर में इसके शो हुए हैं। मौका मिले को जरूर देखिएगा, बहुत अच्छा लगेगा। और मुलाकात होने पर राजेश को जरूर डांटिएगा, दो साल भटकाने के लिए। पिछले साल मेरे घर आया तो नॉवल उसके सामने पड़ा था। उसने कुछ पन्ने पलटकर भी देखे, फिर भी भूल गया। मेरठ में तलाशता रहा, लेकिन ये याद नहीं किया कि कहां देखा था।
ReplyDeleteyou are really very sensitive,everything you sense and of course in different manner,also capable of transforming your sensitiveness in to words,that great
ReplyDeleteaapne kitab poori pad li ho to kuch jaroor likhana. kab rona aaya, kab laga ki, are ye to bilkul film ki script jaisi hai.
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